छंदों में आबद्ध कविताएँ ही दीर्घजीवी होती हैं और रचनाकार को आयुर्मान बनाती हैं 

साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई काव्य-कार्यशाला, नवोदित कवियों के साथ बुज़ुर्गों ने भी सीखी कविताई

पटना। छंद से कविता को गेयता प्राप्त होती है। गेय रचनाएँ श्रोताओं और पाठकों के कंठ से होकर हृदय में उतरती और स्थायी स्थान बना लेती है। ऐसी ही छंदोबद्ध कविताएँ दीर्घ-जीवी होती हैं और कवि अथवा कवयित्री को आयुर्मान बनाती हैं। तुलसी, सूर, कबीर,मीरा, रहीम, रसखान आज भी इसीलिए जीवित हैं कि उनकी रचनाएँ विविध छंदों में थीं और इसीलिए मानव-जिह्वा पर चढ़ी रहीं।

यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में विगत १ सितम्बर से आयोजित हिन्दी पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला’ के सातवें दिन आयोजित हुई ‘काव्य-कार्यशाला’ की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि मात्रिक-छंद लिखना अत्यंत सरल है। ‘कठिन’ मानकर कविगण प्रयास ही नहीं करते हैं, यही बाधा है। मात्रा की गणना सरलता से सीखी जा सकती है। इसके लिए छंद के जानकार किसी भी वरिष्ठ कवि के सान्निध्य में जाना उचित है और यदि ऐसी कार्यशालाओं के आयोजन होते हों तो उनमें अवश्य भाग लेना चाहिए। डा सुलभ ने मात्राओं की गणना के साथ गीत-ग़ज़ल, दोहे, मुक्तक, कुंडलियाँ आदि के रचना-विधान से कवियों को अवगत कराया।

छंद पर अपना व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ कवि पं मार्कण्डेय शारदेय ने कहा कि छन्द जानना इस लिए आवश्यक कि कविता गेय हो जाती है। यह एक सुंदर कला है, जो किसी सामान्य को ‘विशेष’ बनाता है। ‘छांदस’ शब्द की उत्पत्ति ‘छद’ धातु हुई है, जिसका अर्थ है- ‘जो अपनी इच्छा से चलता है’। छंद-शास्त्र के प्रणेता कवि पिंगल माने जाते हैं, जो ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व हुए थे।

छंद के वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन ने छंद-विधान, अलंकार और प्रतीकों के प्रयोग का सोदाहरण प्रशिक्षण दिया। उन्होंने ‘गणात्मक-दोष’ को समझने पर बल दिया और कहा कि गीति-काव्य में ‘यति’ और ‘गति’ की साधना भी आवश्यक है। किसी भी एक छंद को साध लेना कवि के लिए पर्याप्त हो सकता है।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा पूनम आनंद, चंदा मिश्र, डा आर प्रवेश, डा शालिनी पाण्डेय, अरुण कुमार श्रीवास्तव, पंकज प्रियम, ई अशोक कुमार, सिद्धेश्वर, मनोज कुमार उपाध्याय, सुजाता मिश्र, सरिता कुमारी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्णरंजन सिंह, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, दिनेश्वर लाल ‘दिव्यांशु’, बाँके बिहारी साव, भास्कर त्रिपाठी, नन्दन कुमार मीत, मयंक मानस, अल्पना कुमारी, राहूल कुमार, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, विजय कुमार, सत्य प्रकाश, संजय कुमार, रवि रंजन आदि कवियों एवं प्रबुद्धजनों ने प्रशिक्षण-शाला में भाग लिया।

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