ताजमहल से की जाती है इस बादशाह के मकबरे की तुलना

PATNA ( BIHAR NEWS NETWORK – डेस्क )|

श्रेया की रिपोर्ट

दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले भारत के प्रसिद्ध बादशाह शेरशाह सूरी व उनके पुत्र सलीम शाह सूरी की देन रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम में निर्मित मकबरा अफगान स्थापत्य कला का अप्रतिम नमूना (Unequaled Sample of Afghan Architecture) है। शेरशाह सूरी के इस मकबरे की तुलना ताजमहल से की जाती है।

22 एकड़ क्षेत्रफल में फैले विशाल तालाब के बीच स्थित यह मकबरा 150 फीट ऊंचा है। अपने ऐतिहासिक महत्व व बेजोड़ स्थापत्य कला के कारण यह मकबरा देश की प्रसिद्ध पुरातात्विक धरोहरों में से एक है। शेरशाह ने इस मकबरे को अपने शासन काल 1540-1545 ईस्वी में बनवाना शुरू किया था। कलिंजर के किले में बारूद विस्फोट के दौरान शेरशाह के मारे जाने के बाद इस मकबरे को पुत्र सलीम शाह सूरी ने पूरा करवाया।

1130 फीट लंबे और 865 फीट चौड़े तालाब के बीचोबीच स्थित इस मकबरे में जाने के लिए 350 फीट लंबा पुल है। यही पुल हमें शेरशाह शेरशाह के रौजा के एक बड़े चबूतरे तक ले जाता है, जो पानी की सतह से 30 फीट ऊंचा है। पुल से सीढ़ियां चबूतरे तक ले जाती हैं। इसी चबूतरे के बीच में 135 फीट व्यास में अष्टकोणीय आधार पर मकबरा स्थित है।

मकबरे के चारों तरफ 10 फीट चौड़ा व 22 फीट ऊंचा बरामदा है। बरामदे के आठो कोण में कुल 24 दरवाजे बने हैं। मकबरे के भीतर से गुंबद का भव्य रूप दिखाई पड़ता है। इसमें 16 रोशनदानों से रोशनी आने की व्यवस्था है। इस मकबरे के भीतर 24 कब्रें हैं। बादशाह शेरशाह सूरी की कब्र मकबरे के ठीक बीच में है। बादशाह के शव को कलिंजर से लाकर यहीं दफनाया गया था।

यह मकबरा तीन मंजिला है। ऊपर जाने के लिए दक्षिणी-पूर्वी दिशा के गलियारे से सीढ़ी है। ऊपर कंगूरेदार मुंडेर से घिरा है। मुख्य गुंबद के चारों ओर अष्टभुज के किनारों पर आठ स्तंभवाले गुंबज लगे हैं। चबूतरे के ऊपर इस मकबरे की कुल ऊंचाई 120 फीट है। पानी की सतह से ऊंचाई 150 फीट है।

शेरशाह सूरी की मौत के तीन महीने बाद सलीम शाह के मकबरे को पूरा कराने पर 16 अगस्त 1545 ईस्वी को लिखा गया शिलालेख है। इस मकबरे की नक्काशी व शिल्पकला पर्यटकों को अफगान स्थापत्य कला की जानकारी देती है।

आपको बता दें की, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जानकार माने जाने वाले एलेक्‍जेंडर कनिंघम बंगाल इंजीनियरिंग समूह के साथ ब्रिटिश सेना के इंजीनियर थे। भारत के इतिहास और पुरातत्व में रुचि थी। इसपर कार्य किए। कनिंघम ने शेरशाह रौजा को ताजमहल के समान खूबसूरत बताया है। कनिंघम को भारतीय पुरातत्‍व अन्‍वेषण का पिता (Father of Indian Archeological Exploration) कहा जाता है।

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