दिगम्बर जैन समाज का सबसे महत्वपूर्ण दस दिवसीय दसलक्षण पर्व रविवार आठ सितम्बर से

पटना। पर्यूषण या दसलक्षण पर्व, जैन समाज का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. दिगम्बर जैन धर्मावलंबी पर्यूषण पर्व भाद्र शुक्ल में 5 से 14 तक मनाते हैं. 10 दिन तक चलने वाले इस पर्व को ‘दसलक्षण’ कहते हैं. इस वर्ष आठ से सत्रह सितम्बर तक यह पर्व मनाया जाएगा। जैन संघ के मीडिया सचिव एम पी जैन ने बताया कि दसलक्षण पर्व विचार एवं आत्मा की शुद्धि का पर्व है. इस पर्व में आत्मा के दस गुणों की पूजा की जाती है. पर्युषण पर्व तप, साधना और संयम द्वारा मन को निर्मल करने और सभी के प्रति मैत्री भाव बढ़ाने का संदेश देता है। भक्त इस पर्व के जरिये आत्मा को खुराक देने का प्रयास करता है। पर्व के दौरान जैन मंदिरों में रोज प्रवचन भी होते हैं। एम पी जैन ने बताया कि इसी पर्व के बीच 13 सितम्बर शुक्रवार को धूप दशमी एवं 17 सितम्बर मंगलवार को अनन्त चतुर्दशी का पर्व भी मनाया जाएगा. इस पर्व की समाप्ति पर क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है। इस दिन सभी एक साल में जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। इस वर्ष पटना के कदमकुआं स्थित श्रीपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में दसलक्षण पर्व सम्पन्न कराने सात प्रतिमाधारी प्राची दीदी एवं तीन प्रतिमाधारी निक्की दीदी पधार रही हैं जिनके सानिध्य में सम्पूर्ण दसलक्षण पर्व की पूजा सम्पन्न होगी। साथ ही इस पूजा को संगीतमय बनाने फिरोजाबाद से संगीतकार सेंकी जैन अपने ग्रुप के साथ पधार रहे हैं। एम पी जैन ने बताया कि दसलक्षण पर्व में मनुष्य की आत्मा के दस गुणों की पूजा की जाती है –

1. क्षमा :- क्रोध पर विजय प्राप्त करने का उपाय क्षमा है. इसलिए जिस किसी से भी बैरभाव है, उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें।
2. मार्दव :- अहंकार पर विजय पाना ही मार्दव धर्म है. व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अहंकार को त्याग कर दूसरों के प्रति विनम्रता के साथ मृदुता का आचरण करे।
3. आर्जव :- आर्जव धर्म द्वारा अपने भीतर मौजूद छल कपट पर विजय प्राप्त करते है। आर्जव व्यक्ति के चरित्र एवं व्यवहार को निष्कपट बनाता है।
4. शौच :- शौच धर्म द्वारा लोभ लालच पर विजय पाएं. शौच धर्म पवित्रता का प्रतीक है। शौच धर्म का अर्थ शरीर की शुद्धता नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धता होती है।
5. सत्य :- जब व्यक्ति क्रोध, अहंकार, माया-चारी एवं लोभ को नियंत्रित कर लेता है, तो सहज ही उसके जीवन में सत्य का अवतरण होता है। सत्य आचरण के बिना आत्म शुद्धि असंभव है।
6. संयम :- संयम ही संतुलित जीवन का आधार है. मनुष्य को अपने पाँचों इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए.
7. तप :- उत्तम तप से मतलब है कि अपने आप को तपाना . पांच इन्द्रियों एवं मन को वश में करना या बढ़ती हुई लालसाओं,इच्छाओं को रोकना तप है।
8. त्याग :- त्याग से ही जीवन में संतोष एवं शान्ति आती है. त्याग का अहंकार नहीं बल्कि अहंकार का त्याग करे।
9. अकिंचन्य :- आकिंचन्य से हर्ष एवं विषाद में सुख दुःख की स्थिति से मुक्ति होता है. आकिंचन्य शब्द का अर्थ है कि जिसके पास कुछ भी न हो। खाली होने का नाम हीं आकिंचन्य है।
10. ब्रहमचर्य :- ब्रह्मचर्य धर्म के पालन से शरीर ढृढ़ एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ है संसार के इन्द्रियों के विषय और कषायों (बुरी आदतें) के साथ तन के राग का त्याग करना.

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