PATNA (BIHAR NEWS NETWORK – DESK)
उत्तर प्रदेश में चढ़े चुनावी तापमान का असर बिहार में भी दिखने लगा है। एक-दूसरे पर शाब्दिक कटाक्षों के बूते समय काट रहे क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में संभावनाएं टटोलने लगे हैं।
सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षाएं सत्ता में शामिल दलों ने पाल रखी हैं। सभी यूपी में दांव लगाने के फेर में हैं और उनकी आशाओं का केंद्र वह भाजपा है जिसकी विचारधारा को लेकर वही साथी आए दिन बयानबाजी करते नहीं थकते।
अभी एक किताब में सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने को लेकर भाजपा पर जदयू (जनता दल यूनाइटेड) हमलावर है। उसके बाद भी वह यूपी में भाजपा के सहयोग से अपनी जमीन तलाशने की जुगत में लगा है।
बिहार में एनडीए की सत्ता है, जिसमें भाजपा, जदयू, हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) व वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) शामिल है। यूपी में भाजपा की ही सरकार है और बिहार से उसके सहयोगी वहां उसके साथ मिलकर चुनाव में उतरने का मन बनाए हैं।
जदयू पिछले चुनाव में भी इस जुगत में था, लेकिन भाजपा की तरफ से कोई आश्वासन न मिलने के कारण वह पीछे हट गया था। इस बार राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए जदयू की उम्मीदें यूपी पर टिकी हैं।
भाजपा के साथ तालमेल के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह को लगाया है और कम से कम तीन दर्जन सीटों की मांग रखी है इस घुड़क के साथ कि सीटें न मिलने की स्थिति में वह अकेले मैदान में उतरेगी।
हालांकि भाजपा की तरफ से अभी कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिला है। बातचीत में रोड़ा यूपी में भाजपा का सहयोगी अपना दल बना है, क्योंकि जदयू व अपना दल, दोनों की राजनीति कुर्मी वोटों पर टिकी है और दोनों का राजनीतिक मैदान पूर्वी उत्तर प्रदेश ही है।
ऐसे में भाजपा के सामने दोनों को समायोजित करने की समस्या है, क्योंकि जदयू की सूची में जो सीटें शामिल हैं, उन पर अपना दल का भी दावा है। ऐसे में जदयू को लेने पर उसे अपना दल की नाराजगी ङोलनी पड़ेगी। जो वह नहीं चाहेगी।