बिहार कांग्रेस का अगला अध्‍यक्ष कौन होगा इसे लेकर कयास जारी, राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सोनिया गांधी इसपर जल्‍द ही करेंगी फैसला

PATNA (BIHAR NEWS NETWORK – DESK)

बिहार कांग्रेस के नेतृत्व का संकट जल्द समाप्त होने की उम्मीद है। बस, यह विवाद सलट जाए कि आखिर किस खेमे के ‘राम’ (अनुसूचित जाति) को अध्यक्ष का आसन सौंपा जाए। कांग्रेस के बड़े नेता अनुसूचित जाति को नेतृत्व देने के पक्ष हैं।

राज्य कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास की पसंद विधायक राजेश राम हैं तो उनके विरोधी दूसरे ‘राम’ पूर्व केंद्रीय मंत्री बालेश्वर राम के बेटे अशोक राम का नाम सामने कर रहे हैं। अब अंतिम फैसला कांग्रेस की राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को करना है।

राज्य कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास हैं। विधायक राजेश राम उनकी पसंद हैं। वे पार्टी के दिग्गज रहे दिलकेश्वर राम के पुत्र हैं। पार्टी का स्थापित नेतृत्व समूह इनके पक्ष में नहीं है। केंद्रीय नेतृत्व को बारी-बारी से मिल कर बताया गया है कि ‘राम’ ही पसंद हैं तो दूसरे राम को अवसर दीजिए।

कांग्रेस में भक्‍त चरण दास के विरोधियों के दूसरे धड़े के ‘राम’ अशोक राम हैं। वे कई टर्म के विधायक हैं। विधायक दल के नेता रह चुके हैं। कांग्रेस की शीर्ष इकाई केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी रह चुके हैं। उनके पिता बालेश्वर राम केंद में मंत्री थे। पार्टी में इज्जत थी। उन्‍हें विवाद रहित चेहरा माना जाता है।

हालांकि, समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव हारने के कारण उनके नेतृत्व और सांगठनिक क्षमता पर सवाल भी उठ रहा है। फिर भी यह पहलू उनकी दावेदारी को मजबूत बनाता है कि अशोक राम को राज्य भर के कांग्रेसी जानते हैं तथा उनके लंबे राजनीतिक जीवन में कोई दाग नहीं है।

असल में राजेश राम के बहाने प्रभारी भक्त चरण दास का विरोध हो रहा है। दास ने अध्य्क्ष सहित कार्यकारिणी तक की सूची आलाकमान को दी है। विरोध इस पर भी है कि कमेटी का गठन अध्यक्ष करेंगे या प्रभारी।

इसे कांग्रेस की राज्य इकाई पर दास के कब्जे की रणनीति के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। दास की राजनीतिक शुरुआत जेपी आंदोलन से हुई थी। आलाकमान को सुझाया जा रहा है कि वह दास के इस पक्ष पर भी गौर करे। वह आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ ही हुआ था।

वैसे तो कांग्रेस के बड़े नेता अनुसूचित जाति को नेतृत्व देने के पक्ष है। लेकिन निर्णय लेने में देरी से नई थ्योरी भी सामने आ रही है। आलाकमान को यह आकलन करने की सलाह दी जा रही है कि अनुसूचित जाति का नेतृत्व किस हद तक इस समूह के वोट बैंक को प्रभावित कर पाएगा। क्योंकि इस समूह के सबसे ताकतवर हिस्से का जुड़ाव लोक जनशक्ति पार्टी से है।

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