वीआइपी नेता मुकेश सहनी के खिलाफ भाजपा को इतना सख्‍त आखिर क्‍यों होना पड़ा ?

PATNA (BIHAR NEWS NETWORK – DESK)

बिहार में भाजपा के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती बोचहां विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव और स्थानीय प्राधिकार कोटे के विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव है। यही कारण है कि बोचहां में मतदान से पहले विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) प्रमुख मुकेश सहनी को भाजपा सहानुभूति लहर का फायदा लेने देने के चक्कर में नहीं थी, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो कठोर फैसला लेना पड़ा। मुकेश को मंत्रिमंडल से हटवाकर भाजपा ने प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में अपने आत्मविश्वास का परिचय दिया।

भाजपा के इस फैसले ने साफ कर दिया कि वह कोई समझौता करने के पक्ष में नहीं है। उसे चुनौती देने वाले को सरकार में सहारा नहीं मिल सकता है। यह जानते हुए भी कि बोचहां में एक खास समूह के वोटरों की संख्या के चलते उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है फिर भी भाजपा को आरपार के लिए तैयार होना पड़ा।

फैसला बड़ा हुआ है तो असर भी छोटा नहीं होगा। सरकार से मुकेश की छुट्टी का असर दोनों तरफ पड़ सकता है। भाजपा ने अपने लिए अकारण एक राजनीतिक शत्रु खड़ा कर लिया है तो मुकेश की भी साख पर आंच आनी तय है। जो कुछ हुआ, उसके लिए उनकी चपलता और अस्थिरता भी कम जिम्मेवार नहीं है।

भाजपा ने राजद से दरकिनार किए गए वीआइपी के साथ गठबंधन कर पहले तो मुकेश को राजनीति में हैसियत दी। फिर अपने कोटे से विधानसभा की 11 सीटें देकर खड़ा होने का मौका दिया।

आखिर में हारे हुए नेता को विधान परिषद के दरवाजे से मंत्री बनाकर फर्स से अर्श पर पहुंचा दिया। इस क्रम में भाजपा ने अपने दल के सहनी समाज के नेताओं को भी नजरअंदाज कर दिया। परिणाम सामने है। मुकेश की तरफ से भाजपा को तात्कालिक तौर पर बोचहां उपचुनाव में चुनौती मिलती दिख सकती है।

राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार का कहना है कि भाजपा का वीआइपी से गठबंधन ही गलत मुहूर्त में हुआ था। लोकसभा चुनाव में राजद ने सहनी को गठबंधन में तीन सीटें देकर उन्हें आजमा लिया था। तीनों सीटें हारने के बाद भी जब वीआइपी प्रमुख की वाचालता कम नहीं हुई तो राजद ऊब गया। ऐसे में भाजपा को भी अपनाने से पहले नाप-तौल लेना चाहिए था।

चुनाव में सामाजिक समीकरण के लिए अगर सहनी जरूरी थे तो भाजपा के पास भी इस समाज के राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवान लाल सहनी, दो बार के सांसद अजय निषाद एवं एमएलसी अर्जुन सहनी सरीखे कई बड़े नेता मौजूद हैैं, लेकिन भाजपा को मुकेश सहनी के साथ चलने में ही भविष्य दिखा जो अंतत: अच्छा और सच्चा साबित नहीं हुआ।

मुकेश सहनी ने भी सबकुछ असमय प्राप्त कर लेने की हड़बड़ी दिखाई। उन्होंने अपने खिलाफ बन रहे माहौल को नहीं पहचाना। भाजपा के सहारे उन्हें मंत्री बनने का मौका मिला तो पांच वर्ष तक स्थिर रहकर सियासत के तौर-तरीके सीखने चाहिए थे। स्वयं को स्थापित करना चाहिए था। किंतु उन्हें बहुत जल्दी थी।

जिस डाल के सहारे टिके थे, उसे ही बिहार से लेकर यूपी तक काटने लगे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बारे में उल्टा-पुल्टा बयान देकर सहनी ने संकट को आमंत्रित कर लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *