महाकवि विद्यापति मिथिला के ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की विभूति : राजीव रंजन प्रसाद

BENGALURU (BNN- डेस्क)|

रंजीत सिन्हा की रिपोर्ट

● मिथिला और मैथिली के विकास के लिये एक जुट होकर कार्य करने की जरूरत
● मिथिला संस्कृति को विश्वपटल पर पहचान दिलायी विद्यापति ने : राजीव रंजन प्रसाद

ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस (जीकेसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कायस्थ रत्न श्री राजीव रंजन प्रसाद ने मिथिला की संस्कृति को श्रेष्ठत्म संस्कृतियों में एक बताया और कहा कि महाकवि विद्यापति मिथिला के ही नहीं बल्कि राष्ट्र की विभूति हैं और उन्होंने मैथिली भाषा को ऊंचाई प्रदान कर मैथिल संस्कृति को विश्वपटल पर नई पहचान दिलायी.

अखिल भारतीय एकता मंच के सौजन्य से आयोजित विश्वस्तरीय विद्यापति महापर्व समारोह में जीकेसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजीव रंजन प्रसाद ने अतिविशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की. इस अवसर पर अखिल भारतीय एकता मंच की ओर से श्री राजीव रंजन को फूलबुके, शॉल, पगड़ी (पेटा) और मोमेंटो और इलायची का माला देकर उनका भव्य स्वागत किया गया. राजीव रंजन प्रसाद ने अखिल भारतीय एकता मंच के अध्यक्ष श्री उदय सिंह और उपाध्यक्ष अभिषेक बह्मऋषि तथा उनकी टीम को इस कार्यक्रम के आयोजन की बधाई और शुभकामना दी.

श्री राजीव रंजन ने कहा कि विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली भाषा के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं. महाकवि विद्यापति मिथिला की संस्कृति की पहचान हैं. उन्होंने न केवल मैथिली भाषा को ऊंचाई प्रदान की बल्कि मैथिल संस्कृति को भी नई पहचान दी. उन्होंने उत्तरी-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महती प्रयास किया है.

विद्यापति भारतीय साहित्य की ‘श्रृंगार-परम्परा’ के साथ-साथ ‘भक्ति-परम्परा’ के प्रमुख स्तंभों मे से एक थे. वह मैथिली भाषा के सर्वोच्च कवि हैं। इसलिए इन्हें मैथिल कोकिल की संज्ञा दी गई है. हम सभी को मिथिला और मैथिली के विकास के लिये एक जुट होकर कार्य करने की जरूरत है.

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि मिथिला की सांस्कृतिक विरासत सदियों पुरानी है। यह भारतवर्ष ही नही बल्कि एक वैश्विक धरोहर है. मिथिला की संस्कृति श्रेष्ठत्म संस्कृतियों में एक है. महाकवि विद्यापति मिथिला के ही नहीं बल्कि राष्ट्र की विभूति हैं. विद्यापति की रचनाएं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में सहायक हुई थी.

मिथिला की संस्कृति विश्व में गौरव की पहचान है. मिथिला की भूमि विद्वानों का गढ़ माना जाता है. मिथिला की संस्कृति को मैथिलों ने अब भी बचा रखा है. मिथिला के लोग जहां भी जाते हैं, वहां अपनी विद्वता की छाप छोड़ देते हैं. मिथिला पेंटिंग भी हमारी धरोहर है, जो प्रोत्साहन मिलने के बाद विदेशों में भी प्रसिद्धि पा चुकी है.

इस अवसर पर आनंद सिन्हा, डा. मानवेन्द्र कुमार, पूजा चन्द्रा, रूपेश चन्द्रा, प्रशांत कुमार, विनीत सक्सेना, अपूर्व प्रसाद, संजय सिन्हा, आकाश सिन्हा, शैलेन्द्र सिन्हा, हर्ष और निश्चय समेत कई अन्य लोग भी मौजूद थे.

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