राजद और कांग्रेस तीन चुनाव अलग-अलग लड़ चुके हैं, सबके परिणाम ने उन्हें सबक दिया है मगर सच यह भी है कि अतीत से किसी ने सीखा नहीं

PATNA (BIHAR NEWS NETWORK – DESK)

राजद और कांग्रेस का स्वार्थ पहली बार नहीं टकराया है। इसके पहले भी छोटी-छोटी बातों पर कई बार दोनों टकराते रहे हैैं। अलग होते रहे हैं और नुकसान भी उठाते रहे हैं। लौटकर उसी डाल पर वापस भी आते रहे हैं।

वर्ष 2000 से अबतक दोनों दल तीन चुनाव अलग-अलग लड़ चुके हैं। सबके परिणाम ने उन्हें सबक दिया है, मगर सच यह भी है कि अतीत से किसी ने सीखा नहीं। उपचुनाव का नतीजा भी दोनों के लिए सबक लेकर आ सकता है।

बिहार में कांग्रेस को पराजित कर पहली बार 1990 में सत्ता में आए लालू प्रसाद ने दस वर्ष बाद 2000 के विधानसभा चुनाव के उपरांत सोनिया गांधी से तब सहयोग मांगा था, जब सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं जुटा पाए।

तब झारखंड भी बिहार के साथ था। 324 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए उन्हें कम से कम 163 विधायकों की जरूरत थी।

सिर्फ 123 जीतकर आए थे। कांग्रेस विधायकों की संख्या 24 थी। वामदलों और कांग्रेस को साथ लेकर लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद की सरकार बनाई थी।

कांग्रेस के सभी 24 विधायकों को पद दिया। 23 को मंत्री और सदानंद सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया।

राजद-कांग्रेस की यह दोस्ती 2004 के लोकसभा चुनाव में भी बनी रही। जीत का औसत अच्छा रहा। 2005 के दोनों विधानसभा चुनावों में भी दोनों लड़े तो साथ-साथ, परंतु कई सीटों पर दोस्ताना संघर्ष भी हुआ।

असली खेल हुआ वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में जब रामविलास पासवान की लोजपा के साथ मिलकर लालू ने कांग्रेस के लिए सिर्फ तीन सीटें छोड़ी।

बाकी 37 को दोनों ने बांट लिया। लालू-पासवान की यह एकतरफा घोषणा कांग्रेस को नागवार गुजरी। उसने राजद को सबक सिखाने के मकसद से बिहार की सभी 40 संसदीय सीटों पर अपना प्रत्याशी उतार दिया।

राजद के बागियों को प्राथमिकता दी। इससे दोनों को नुकसान हुआ। राजद को चार सीटें मिलीं और कांग्रेस को सिर्फ दो से संतोष करना पड़ा।

बिखराव 2010 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा। लिहाजा कांग्रेस को महज चार और राजद को सिर्फ 22 सीटों पर जीत मिली। विधानसभा चुनाव में राजद की यह अबतक की सबसे बड़ी हार थी।

सीट बंटवारे में आखिरी दौर तक किचकिच का खामियाजा लोकसभा के पिछले चुनाव में भी दोनों दलों को भुगतना पड़ा। अधिसूचना जारी होने के पहले तक दोनों दलों में सीट बंटवारे का झगड़ा होता रहा।

बाद में भी दूसरे के प्रत्याशी को हराने के लिए भितरघात का खेल जारी रहा। नतीजा हुआ कि कांग्रेस ने जैसे-तैसे एक सीट जीतकर प्रतिष्ठा बचा ली, लेकिन राजद का सुपड़ा साफ हो गया। दोनों के प्रत्याशी उपचुनाव में फिर आमने-सामने होंगे। सबकी नजर रहेगी और इंतजार भी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *