काबुल को है हमारी दुआ की ज़रूरत, जानिए कौन है तालिबान? क्यों खौफ में है काबुल, क्यों तालिबान ने काबुल पे जमाया कब्ज़ा

PATNA (BIHAR NEWS NETWORK- DESK)

पूरी दुनिया मौन होकर देखती रह गई और अफगानिस्तान पूरी तरह से तालिबान के हाथ में चला गया। 15 अगस्त 2021 की सुबह जब भारत में लोग आजादी का जश्न मना रहे थे तब तालिबान के लड़ाके अफगान राजधानी काबुल पर घेरा डाल रहे थे और अफगान नागरिकों की आजादी पर कब्जा पक्का कर रहे थे।

पिछले 3 महीनों से जारी लड़ाई में कंधार, हेरात, कुंडूज, जलालाबाद, बल्क समेत अफगानिस्तान के बाकी हिस्से एक-एक कर तालिबान के कब्जे में आते चले जा रहे थे लेकिन राजधानी काबुल में इतनी जल्दी हलचल मचने वाली है इसका अंदाजा शायद ही किसी को था।

रविवार की सुबह तालिबान के लोगों ने अचानक काबुल पर घेरा डाला और अफगान सरकार और सेना बिना मुकाबला किए सरेंडर करती दिखी। इस बीच, अमेरिकी डिप्लोमैट्स को आननफानन में काबुल से ले जाते हेलिकॉप्टर की तस्वीर भी पूरी दुनिया ने देखी।

मशीनगनों, रॉकेट लॉन्चर से लैस तालिबान लड़ाके काबुल शहर को घेरते चले गए। बगराम एयरबेस, बगराम जेल पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया, काबुल शहर के एंट्री गेट और आसपास के कई अहम इमारतों को एक-एक कर तालिबान लड़ाके कब्जाते चले गए और शाम होते-होते अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर जाने की खबर भी आ गई।

शहर से बाहर जाने वाली सड़कों पर भारी ट्रैफिक जाम दिखा। देश को मंझधार में छोड़कर भले ही राष्ट्रपति अशरफ गनी के लोग भाग गए हों लेकिन सेना, एयरफोर्स के लोगों के लिए तालिबान के शासन में रहना मौत के खेल से कम बिलकुल भी नहीं है। तालिबान के खिलाफ मोर्चा संभाले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने ट्वीट किया कि तालिबान के साथ मिलकर काम करना किसी भी सूरत में संभव नहीं।

वहीं एयरफोर्स के पायलट मेजर रहमान रहमानी ने कहा कि आज अगर तालिबान के लोग सेना और पुलिस के लोगों पर जुल्म ना भी करें तो छह महीने बाद ये घर-घर जाएंगे और उनके खिलाफ जंग लड़ने वालों का कत्लेआम करेंगे, उनकी औरतों-बच्चियों के साथ बर्बरता करेंगे। इनके सामने सरेंडर करने की जगह जान दे देना सही है।

अफगान की महिला फिल्ममेकर साहरा करीमी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर लाइव हुआ जिसमें वह तालिबान की एंट्री के बाद काबुल छोड़कर जाती दिखीं और दुनिया से अफगान लोगों को बचाने की गुहार लगाती दिखीं।

इतिहास शायद ही किसी मुल्क की किस्मत में इतने अजीबो-गरीब तरीके से वक्त के पन्ने पलटता हो, जितना अफगानिस्तान की पहाड़ी-पथरीली जमीन ने देखी है। कभी रूस के समर्थन से चल रहे जहीर शाह के शासन में आधुनिकता की ओर बढ़ रहा अफगानिस्तान 1990 के दशक में तालिबान के मध्ययुगीन शासन को भी देख चुका है।

इसके बाद 9/11 के हमले के बाद अमेरिकी और नाटो देशों की सेनाओं ने तालिबान के शासन से मुक्ति दिलाई तो बीस साल में अपने पैरों पर खड़ा होना मुल्क सीख ही रहा था कि तालिबान ने फिर सिर उठा लिया। अप्रैल 2021 में अमेरिका ने ऐलान किया कि सितंबर तक उसके सैनिक लौट जाएंगे, इसके बाद तालिबान ने हमला तेज किया और आज नतीजा सबके सामने है।

जहां-जहां तालिबान का कब्जा होता गया वहां फिर वही शरिया कानून, कोड़े मारने की सजा, सड़कों पर कत्लेआम और दाढ़ी बढ़ाने, संगीत सुनने, महिलाओं पर पाबंदियों जैसे मध्ययुगीन फरमानों का दौर लौटता गया। पूरे देश पर अब फिर तालिबान का कब्जा है और लोग खौफ से फिर घर-बार छोड़कर पड़ोसी मुल्कों में भागने को मजबूर हैं।

अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उभार हुआ था। पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों। कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी।

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