PATNA (BIHAR NEWS NETWORK – DESK)
नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार के पिछड़ेपन की चर्चा के मद्देनजर राज्य सरकार ने विशेष अनुदान की मांग की है। ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर में सुधार के उन मानकों पर अधिक खर्च हो, जिन्हें नीति आयोग की रिपोर्ट में लगातार पिछड़ा बताया जा रहा है।
सरकार की ओर से हाल के वर्षों में केंद्रीय अनुदान में कटौती पर नाराजगी जाहिर की गई है। कहा गया है कि पर्याप्त आर्थिक मदद न मिलने पर राज्य में बीते 15 वर्षों से बने विकास के परिदृश्य को कायम रखने में मुश्किलें पैदा हो रही है।
नई दिल्ली में गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में आयोजित बजट पूर्व बैठक में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने ये मांगें रखीं। इसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल हुए।
उन्होंने सरकार की ओर से दिए ज्ञापन में कहा कि 14 वें वित्त आयोग की सिफारिश पर वित्तीय वर्ष 2015-16 से राज्य को अनटाइट मद में अधिक राशि मिल रही थी। केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी बढ़ने का सिलसिला वित्तीय वर्ष 2018-19 तक जारी रहा। उस समय तक इस मद में राज्य को 73 हजार करोड़ रुपये तक मिला।
उसके बाद लगातार गिरावट हुई, जबकि इन वर्षों में स्थापना खर्च बढ़ता रहा। उन्होंने कहा कि राज्य की राजस्व प्राप्तियों में केंद्र की भागीदारी आधी होती है। कम राशि मिलने का असर वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट घाटे में चला गया। एक वजह यह भी बताई गई कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य का अंशदान बढ़ गया।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2015-16 के पहले तक केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य को 10, 25 और 35 प्रतिशत तक हिस्सा देना था। पैटर्न बदला तो अब राज्य को 40 प्रतिशत देना पड़ रहा है। इससे भी राज्य के खजाना पर बोझ बढ़ा।
विकास के बावजूद कई मानकों पर बिहार इसलिए पिछड़ा नजर आता है, क्योंकि उसे केंद्र से जरूरत के अनुसार राशि नहीं मिल रही है। राजकोषीय घाटा को कम करने के लिए उधार की सीमा पांच प्रतिशत तब बढ़ाने की मांग भी ज्ञापन में शामिल है। कहा गया है कि इससे राज्य के विकास में मदद मिलेगी।
अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार अधिनियम एवं नागरिक संरक्षण अधिनियम के तहत अत्याचार पीडि़तों या उनके आश्रितों को राहत एवं मुआवजे के तहत राशि दी जाती है। 50 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार देती है। फिलहाल इन अधिनियमों के तहत मुआवजा के पांच हजार दो सौ 32 मामले लंबित हैं। केंद्र इसके लिए अतिरिक्त राशि दे।
ज्ञापन में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कार्यान्वयन में बिहार की अलग भौगोलिक स्थिति के कारण अधिक खर्च करना पड़ता है। सिर्फ पिछले वित्तीय वर्ष में ही राज्य सरकार को इस मद में 570 करोड़़ रुपया अतिरिक्त खर्च करना पड़ा।
केंद्र सरकार राज्यों की भौगोलिक स्थिति को नजर रख कर मानदंड बनाए या अतिरिक्त खर्च की भरपाई करे। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार केंद्र प्रायोजित योजनाओं को बनाते समय ही राज्यों के लिए राशि निर्धारित कर दे। ताकि राज्य सरकार उस हिसाब से अपनी योजना बना सके।