2 साल तक के इंतज़ार के बाद मिलता है द्वारकाधीश मंदिर में 52 गज की ध्वजा चढाने का मौका, जानें क्या है इसका महत्त्व

PATNA (BIHAR NEWS NETWORK- डेस्क)|

श्रेया की रिपोर्ट

हिंदू धर्म में द्वारकाधीश के मंदिर का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यह हिंदूओं के चारों धामों में से एक धाम है। यहां पर भगवान द्वारकाधीश की पूजा की जाती है। द्वारकाधीश का शाब्दिक अर्थ है द्वारका का राजा। गुजरात राज्य में गोमती नदी के तट पर स्थित द्वारकाधीश का यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। इसे अर्थात द्वारकाधीश के मंदिर को, बदरीनाथ, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी के साथ भगवान नारायण के चार पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण की राजधानी थी।

द्वारकाधीश मंदिर में ध्वजा पूजन का विशेष महत्व होता है। गुजरात के जिस द्वारकाधीश मंदिर में बिजली गिरी वहां दिन में पांच बार ध्वज फहराया जाता है। मंदिर के शिखर पर 52 गज का ध्वज फहराने की पुरानी प्रथा है। इसे श्रद्धालु स्पॉन्सर करते हैं। ध्वज फहराने के लिए 2023 तक एडवांस बुकिंग हो चुकी है। नई बुकिंग फिलहाल बंद है।

द्वारकाधीश के मंदिर पर लगे ध्वज में सूर्य और चंद्रमा का प्रती‍क चिह्न बना होता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब तक इस धरती पर सूर्य चंद्रमा रहेंगे तब तक द्वारकाधीश का नाम रहेगा। सूर्य और चंद्रमा को भगवान श्री कृष्ण का प्रतीक माना जाता है। इस लिए द्वारकाधीश मंदिर के शिखर पर सूर्य चंद्र के चिह्न वाले ध्वज लहराते हैं।

द्वारकाधीश की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाया जाता है। मंदिर की पूजा आरती गुगली ब्राह्मण करवाते हैं। पूजा के बाद ध्वज द्वारका के अबोटी ब्राह्मण चढ़ाते हैं।

यहाँ पर ध्वज बदलने के लिए एक बड़ी सेरेमनी होती है। जो परिवार ध्वज को स्पॉन्सर कर रहा है वो नाचते गाते हुए आते हैं। उनके हाथ में ध्वज होता है। इसे भगवान को समर्पित किया जाता है। वहां से अबोटी ब्राह्मण इसे लेकर ऊपर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं। नया ध्वज चढ़ाने के बाद पुराने ध्वज पर अबोटी ब्राह्मणों का हक होता है। इसके कपड़े से भगवान के वस्त्र वगैरह बनाए जाते हैं।

यहाँ की एक और कहानी है कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं। एक और मान्यता है कि द्वारका में एक वक्त 52 द्वार थे। ये उसी का प्रतीक है। मंदिर के इस ध्वज के एक खास दर्जी ही सिलता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है उस तरफ देखने की मनाही होती है।

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