PATNA (BIHAR NEWS NETWORK-DESK)
स्पेशल रिपोर्ट
सावन का मौसम सभी को भाता है, झुलसा देने वाली गर्मी और उमस के बाद सावन की ठंडी बयार सबको भली लगती है। कभी रिमझिम हल्की फुहार कभी घनघोर घटाओं का खूब बरसना, सारी प्रकृति धुल कर निखरी सी लगती है।
नीले नभ में इन्द्रधनुष देखकर जितने बच्चे खुश होते हैं उतने ही हर उम्र के लोग। ये मौसम सभी के तन-मन को ताजगी का अहसास कराती है। ऐसा कोई भी नहीं होगा जो इस हसीं मौसम में खुश न हो।
सावन की शुरुवात होते ही बारिश की मौसम की भी शुरुवात हो चुकी है। अंग्रेजी में सावन को ”ग्रीन मंथ” भी कहा जाता है। सावन के महीने में अक्सर सुहागन औरतें हरे रंग की चूड़ियां एवं साड़ियां पहनती हैं। सावन की शुरुवात होते ही हर तरफ जैसे हरियाली छा जाती है। कई लोग बारिश के मौसम में भीग के लुत्फ़ उठाने की कोशिश भी करते हैं।
दरअसल, ऐसा माना जाता है की सावन की बारिश में भीगने से सेहत को कई फायदे होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मौसम में बारिश पहले से ही हो रही होती है, जिसके कारण वातावरण में मौजूद गंदगी साफ हो जाती है। यानी सावन की बारिश का पानी साफ होता है, जो स्किन और सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता।
सावन के बारिश में नहाने से स्किन और चेहरा बहुत ही प्रभावी तरीके से साफ हो जाता है। बारिश के पानी से स्किन पर जमा हानिकारक बैक्टीरिया भी दूर हो जाते हैं। सावन कई त्योहारों को लेकर आता है जैसे- हरियाली तीज, नागपंचमी और रक्षा बंधन। कहा जाता है कि सावन महीना जीवन साथी और भाई दोनों के लिए खास महत्व रखता है।
कहा जाता है की मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा।