PATNA (BIHAR NEWS NETWORK- डेस्क)|
श्रेया की रिपोर्ट
बिहार की चुनावी राजनीति की तो लिट्टी-चोखा के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती। किसी भी दुकान पर चले जाएं, दो पीस लिट्टी और चोखा पेट में जाते-जाते पटना से दिल्ली ही नहीं, रूस-अमेरिका तक के कितने ही सियासी तार जुड़ते-बिखरते जाएंगे। लिट्टी चोखा को बिहार का व्यंजन माना जाता है। बिहारी पहचान वाले इस व्यंजन को लोग बड़े ही चाव से खाते हैं।
सब्र का फल मीठा होता है यह तो सभी ने सुना है, मगर बिहार के लिए यह स्वाद लिट्टी-चोखा के तीखेपन से जुड़ा है। बिहार के लोगों ने ही इसे दूसरे राज्यों में भी फैलाया है। आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं।इसकी एक खासियत यह भी है कि यह कई दिनों तक खराब नहीं होता, लेकिन लोग इसे ताजा और गर्मागर्म खाना ही पसंद करते हैं। आम तौर पर सर्दी के दिनों में लोग अलाव सेंकते हुए घर के बाहर ही रात के खाने का इंतजाम भी कर लेते हैं।
लिट्टी को गेहूं के आटे में सत्तू को भरकर इसे आग पर पकाया जाता है। फिर देसी घी में डुबोकर इसे खाया जाता है। जिन्हें कैलोरी की फिक्र है, वो बिना घी में डुबोये लिट्टी का स्वाद ले सकते हैं। तला-भुना नहीं होने की वजह से ये सेहत के लिए अच्छा है। इसे ज्यादातर बैंगन के चोखे के साथ खाया जाता है। बैंगन को आग में पकाकर उसमें टमाटर, मिर्च और मसाले को डालकर चोखा तैयार किया जाता है। बिहार का ये व्यंजन राजस्थान के बाटी-चूरमा की तरह है, बिहार में ये खासा लोकप्रिय है। इसे बनाना भी आसान है और ये पौष्टिक भी है।
मोटे तौर पर लिट्टी बिहारी महिलाओं की रसोई का हिस्सा कम, और पुरुषों और यात्रियों का साथी अधिक रहा है। लिट्टी-चोखा ऐसी चीज है जिसे आप सुविधा और उपलब्ध सामग्री के हिसाब से जैसे चाहे वैसे बना सकते हैं। अगर घी है तो अच्छी बात है, अगर अचार और चटनी है तो और भी अच्छा है, अगर नहीं भी हैं, तो कोई बात नहीं।
बताया जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के समय में इसे युद्ध के समय खाया जाता था। क्योंकि इसे बनाने में कम पानी लगता था और किसी बर्तन की भी ज़रूरत नहीं होती। लिट्टी-चोखा का इतिहास दिलचस्प है। इसका इतिहास मगध काल से जुड़ा है, कहा जाता है कि मगध साम्राज्य के दौरान लिट्टी चोखा प्रचलन में आया। मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र हुआ करती थी, जिसे आज बिहार की राजधानी पटना के तौर पर जाना जाता है।
लिट्टी-चोखा का जिक्र मुगल काल में भी मिलता है। लेकिन इस दौर में इसका स्वाद बदल गया। मुगल काल में मांसाहार ज्यादा प्रचलित था। इस दौर में लिट्टी के साथ शोरबा और पाया खाने का प्रचलन शुरू हुआ। इसी तरह ब्रिटिश शासन के दौरान भी इसमें तब्दिली आई।