पुरे देश में अपनी वीरता का मिसाल कायम करने वाली झाँसी की रानी का आज 163 वां पुनियतिथि, जाने पूरी कहानी की कैसा रहा उनका संघर्ष, कैसे बनी रानी से झांसी वाली मर्दानी रानी

BIHAR NEWS NETWORK – डेस्क

श्रेया की खास रिपोर्ट

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को विशेष स्थान प्राप्त है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भारत के इतिहास की एक ऐसी महान वीरांगना रही हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। आज (18 जून) को नारी शक्ति की मिसाल देने वाली उसी रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि है।

बता दें की आज 18 जून को रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस के रूप में देश उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें हर साल याद करता है। रानी ने अपनी जीवन की अंतिम लड़ाई में ऐसी वीरता दिखाई कि अंग्रेज भी उनके कायल हो गए। रानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम और साहस का जिक्र आज भी किया जाता है। अंग्रेजी हुकूमत के आगे रानी लक्ष्मीबाई ने कभी हार नहीं मानी यही वजह भी है की उन्होंने आज ही के दिन यानी 18 जून 1958 अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था।

एक प्रकाश उनकी जीवनी पर

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले में 19 नवम्बर 1828 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था और माता का नाम भागीरथी सप्रे। उनके माता-पिता महाराष्ट्र से सम्बन्ध रखते थे। रानी के बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर परिवारवाले उन्हें प्यार से मनु पुकारते थे। जब लक्ष्मीबाई मात्र चार साल की थीं तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया।

माँ के गुजरने की बाद मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गये। उनके पिता मराठा बाजीराव की सेवा में थे। सन 1842 में मनु का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ और इस प्रकार वे झाँसी की रानी बन गयीं और उनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कर दिया गया।

आपको बता दें की 1851 में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव को पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन चार महीने की आयु में ही बच्चे की मृत्यु हो गयी। उधर गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ने के कारण उन्हें दूसरे पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को गंगाधर राव परलोक सिधार गए। उनके दूसरे पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

इसके बाद झांसी की बांगडोर लक्ष्मीबाई के हाथों में आ गई। तब अंग्रेज एक के बाद एक भारतीय रियासतों को अपने कब्जे में ले रहे थे। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने साफ कह दिया था – ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’।

बताया जाता है की 23 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया और 3 अप्रैल तक जम कर युद्ध हुआ जिसमें रानी को तात्या टोपे का साथ मिला। इस कारण से वे अंग्रेजों को झांसी में घुसने 13 दिन तक घुसने से रोकने में सफल रह सकीं। लेकिन 4 अप्रैल को अंग्रेजी सेना झांसी में घुस गई, और रानी को झांसी छोड़ना पड़ा।

17 जून को रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध शुरू हुआ। इसी बीच एक तलवार ने उसके सिर को एक आंख समेत अलग कर दिया और रानी शहीद हो गईं। बताया जाता है कि शरीर छोड़ने से पहले उन्होंने अपने साथियों से कहा था कि उनका शरीर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगना चाहिए। उनके शरीर को बाबा गंगादास की शाला में अंतिम संस्कार कर दिया गया।

|| आज के दिन वीरता की मिसाल रानी लक्समी बाई की 63वें पुण्यतिथि पर हमारा भाव पूर्ण श्रद्धांजलि ||

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