PATNA (BIHAR NEWS NETWORK- डेस्क)|
श्रेया की रिपोर्ट
कोरोना संक्रमण ने हर तबके के लोगो पर बहुत ही बुरा असर डाला। गरीब या अमीर हर लोग इस महामारी से परेशान से और बस इसी बात की कामना करते है की कैसे भी यह कोरोना महामारी जल्दी ख़तम हो जिससे की हम सब पहले की तरह अपना जीवन बिता सकें। लेकिन बात गाओं वासियों और गरीबों की करें तो सबसे ज़यादा इस महामारी से इस वक़्त वोप्रभावित हुए है।
इन सब में अच्छी बात तो ये है इनलोगो को पांच महीने का मुफ्त राशन, उज्ज्वला योजना के तहत दी गई है, और साथ में रसोई गैस और केंद्र-राज्य सरकार की ओर से दिए गए कुछ नकद पैसो की वजह से इन गरीबों की हालत बत्तर होने से बची हुई है। इस संक्रमण की वजह से महिलाएं और छोटे बच्चे भी अधिक प्रभावित हुए है । सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इनकी थाली में पौष्टिक भोेज्य सामग्रियों की अभी भी कमी बानी हुई है।
दरअसल, इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के सर्वे के रिजल्ट्स सरकारी योजनाओं की महत्ता को चिह्नित कर रहे हैं। साथ में यह भी देखे जा रहे हैं कि इन राहत की योजनाओं में भी प्रतिष्ठित लोग अपने खास के लिए रास्ता निकाल ही लेते हैं। इस सर्वे में सही पोषण की जांच के लिए आठ मानक चीज़ो को तय किया गया था जिनमे -अनाज और आलू, चना और अन्य दाल, दूध और दूध उत्पाद, अंडा, मछली-मटन, हरी सब्जी, फल-पीला फल एवं अन्य मौसमी फल मौजूद रखा गया था। साथ ही यह भी तय किया गया था कि इन आठ में से तीन-चार सामग्री भी अगर किसी की थाली में उपलब्ध रहे तो उसे पोषक भोजन की श्रेणी में रखा जाएगा।
लेकिन हैरानी की बात तो यह है की, गांव के गरीबों के बीच इन खुशनसीब लोगों की संख्या न के बराबर पाई गई। दिलचस्प तो यह है कि इस सर्वे में शामिल सभी सामाजिक श्रेणियों की महिलाओं और बच्चों की हालत एक जैसी पाई गई। सर्वे की शुरुआत सामान्य प्रक्रिया के तहत जनवरी-मार्च 2020 में की गई थी जिसके बाद कोरोना का दौर आ गया। इसके बाद के सर्वे में यह तथ्य अपने आप जुड़ गया कि कोरोना ने गरीबों की थाली को किस हद तक प्रभावित किया है। सर्वे के नतीजे जिस वक्त आए, कोरोना का दूसरा दौर भी शुरु हो गया है और साथ में लाॅकडाउन भी। मुफत राशन की सुविधा तो बेशक दी गई है लेकिन नकद पैसो की चर्चा कहीं नहीं है।
मिली जानकारी के अनुसार यह पता चला की सर्वे का एक हिस्सा यह बताता है कि सरकारी राहत योजना के एक हिस्से का मुंह रसूखदार लोग अपनों की ओर मोड़ देते हैं। ऐसी शिकायतें प्रतिभागियों की ओर से मिली कि रसूखदार लोग अपने लोगों को अधिक राहत सामग्री देकर उपकृत करते हैं। हां, 92 फीसद प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उन्हें पांच महीने तक का मुफत अनाज मिला लेकिन संभवतः बाकी आठ फीसद अनाज रसूख वालों ने अपनों को दे दिया।
बता दें की, 81 फीसद लोगों के खाते में जन धन और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत रुपये भी गए। उज्जवला योजना के जरिए बमुष्किल 53 फीसद योग्य परिवारों को रसोई गैस दी गई और केंद्र और राज्य सरकार की पांच राहत योजनाओं में से औसत चार योजनाओं का लाभ हरेक ग्रामीण परिवार को मिला साथ ही 52 फीसद परिवारों को मिड डे मील की भी राशि मिली।
आपको बता दें की, द इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर की ओर से प्रायोजित इस सर्वे का संयोजन जाकिर हुसैन, शाष्वत घोष और मौसमी दत्ता ने किया। बिहार के कुछ जिलो जैसे नालंदा, सहरसा, बेगूसराय, मुजफफरपुर, पूर्वी चंपारण एवं कटिहार में यह सर्वे हुआ। पहला सर्वे-जनवरी-मार्च, दूसरा-अक्टूबर-नवम्बर २०२० में हुआ था। कुुल 2250 महिलाओं की भागीदारी भी रही। पहला सर्वे आमने सामने हुआ, जबकि दूसरे के लिए मोबाइल का सहारा लिया गया। सर्वे में 36 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं शामिल हुईं। उनसे तीन महीने से तीन साल के बच्चे के खानपान के बारे में पूछा गया।